जो पर्यावरण से दूर गया, वो बीमारी के करीब गयाः डा. सुजाता संजय
जो पर्यावरण से दूर गया, वो बीमारी के करीब गयाः डा. सुजाता संजय
देहरादून, यदि हमें स्वस्थ रहना है तो बहुत आवश्यक है कि हम पर्यावरण का संरक्षण करें नहीं तो हमारी भावी पीढ़ियों को बहुत कुछ भोगना पड़ सकता है जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। पर्यावरण से छेड़छाड़ त्रासदी को न्योता देने जैसा है। पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली पर ध्यान केंद्रित करने के लिए इस वर्ष 2021 में थीम इकोसिस्टम रेस्टोरेशन यानी कि पारिस्थितिकी तंत्र बहाली है। विश्व पर्यावरण दिवस की इस साल की थीम के तहत पर्यावरण की रक्षा कर प्रदूषण के बढ़ते स्तर को कम करना, पेड़ लगाना और इकोसिस्टम पर बढ़ते प्रेशर को कम करना है। इस अभियान की शुरुआत करने का उद्देश्य वातावरण की स्थितियों पर ध्यान केंद्रित करने और हमारे ग्रह पृथ्वी को सुरक्षित भविष्य को सुनिश्चित करने के लिए है। वैसे भी कोविड का समय चल रहा है ऐसे में बाहर भी नहीं जा सकते हैं। आज के समय में हमारा समाज बहुत आधुनिक समाज बन गया है लेकिन उनसे हमारे पर्यावरण को बहुत नुकसान है अपने पर्यावरण के लिए कुछ ना कुछ अवश्य करना चाहिए।
जैसा कि दुनिया कोविड-19 संकट से पीड़ित है और हाल के दिनों में भारत ने आक्सीजन की कमी के कारण कई हताहतों को देखा है हम पर्यावरण से जितना दूर जाएंगे, बीमारियां उतना हमारे करीब आएंगी और हम दिन-ब-दिन असक्षम होते जाएंगे। यदि हमने पौधे लगाए होते तो शायद आज हमको इतना परेशान नहीं होना पड़ता लेकिन पेड़ों को तो हमने आधुनिकता की ओर बढ़ने की राह में अवरोध समझकर काट डाला। पर्यावरण के साथ छेड़छाड़ न सिर्फ हमारे स्वास्थ्य के लिए घातक साबित हो रही है बल्कि भविष्य के लिए भी रेड अलार्म है। पर्यावरण को पीछे छोड़कर आगे बढ़ने में हम माना कि बहुत कुछ पा तो लेंगे पर खोने के नाम पर हम ऐसा कुछ खो देंगे जिसकी कीमत हमारे मन और शरीर को अदा करना होगी इसलिए पर्यावरण के प्रति अपने कर्तव्य को याद करके हम अपने स्वास्थ्य के लिए भी वरदान पा सकते हैं। इंसान की पर्यावरण को नजरअंदाज करने की यह गलती उसे बीमारियों के करीब ले जा रही है। यह प्रत्येक नागरिक की जिम्मेदारी बनती है कि वह पेड़ लगाने का प्रयास करें, ताकि इस कमी को दूर किया जा सके और पृथ्वी को रहने के लिए एक बेहतर जगह बनाया जा सके।
डाॅ0 सुजाता संजय ने बताया एक समय था जब हम घंटों नंगे पैर घास पर दौड़ते थे और स्वस्थ भी रहते थे, न कोई बीमारियां और न ही कोई चिंता। प्रकृति की गोद में रक्तचाप से लेकर शुगर तक सब नियंत्रित होता था लेकिन आज घास के हमारे आसपास पते ही नहीं है। यदि सोसायटी में कोई बगीचा है भी तो उसमें पैदल नंगे पैर चलने की फुर्सत कहां किसी को। जबकि रक्तचाप के मरीजों के लिए बहुत फायदेमंद है इस तरह से नंगे पैर घास पर घूमना। यदि दिनभर थकान महसूस होती है तो इस तरह प्रकृति के करीब जाने से हमारा शरीर ऊर्जावान महसूस करता है।
डाॅ0 सुजाता संजय ने कहा कि, मौसम का बिगड़ता मिजाज मानव जाति, जीव-जंतुओं तथा पेड़-पौधों के लिए तो बहुत खतरनाक है ही, साथ ही पर्यावरण संतुलन के लिए भी गंभीर खतरा है। मौसम एवं पर्यावरण विकराल रूप धारण करती इस समस्या के लिए औघोगिकीकरण बढ़ती आबादी, घटते वनक्षेत्र, वाहनों के बढ़ते कारवां तथा तेजी से बदलती जीवन शैली को खासतौर से जिम्मेदार मानते हैं। पिछले कुछ वर्षो से वर्षा की मात्रा में कहीं अत्यधिक कमी तो कहीं जरूरत से बहुत अधिक वर्षा जिससे कहीं बाढ़ तो कहीं सूख पड़ रहा है, समुद्र का बढ़ता जलस्तर, मौसम के मिजाज में लगातार परिवर्तन, सुनामी और भूकंप ने संपूर्ण विश्व में तबाही मचा रखी है, पृथ्वी का तापमान बढ़ते जाना जैसे भयावह लक्षण लगातार नजर आ रहे हैं। मौसम वैज्ञानिको का मानना है कि ग्लोबल वाॅमिंग की वजह से ही अब हर साल गर्मी के मौसम में जरूरत से ज्यादा गर्मी पड़ने लगी है। वहीं बारिश पिछले कई सालों से औसत से कम हो रही है।