उत्तराखंड में द्वितीय राजभाषा संस्कृत की दयनीय स्थिति
उत्तराखंड प्रदेश में 22 वर्षों में ऐसा पहली बार हुआ है जब संस्कृत भाषा अपने प्रदेश में ही दम तोड़ रही है संस्कृत के अध्यापकों एवं कर्मचारियों को तीन माह से वेतन भी नसीब नहीं हुआ है ऐसा इसी बार नहीं बल्कि डेढ़ साल से हर बार हो रहा है तीन चार महीने से पहले वेतन नहीं मिल रहा है साथ ही उत्तराखंड संस्कृत अकादमी उत्तराखंड संस्कृत शिक्षा निदेशालय उत्तराखंड संस्कृत शिक्षा परिषद एवं संस्कृत विश्वविद्यालय भी अपनी खस्ताहाल स्थिति में है मान्य संस्कृत शिक्षा मंत्री जी हर दूसरे महीने एक बैठक करके अखबारों में बड़ी बड़ी खबरें छापने तक ही सीमित हैं आज तक किसी भी बैठक में लिए गए निर्णय जमीन पर नहीं उतरे हैं यह बात समझ से परे है कि क्या मान्य मंत्री जी केवल बैठकों तक ही सीमित हैं या संस्कृत वालों को केवल बेवकूफ बनाया जा रहा है कुछ बैठकों के कार्यवृत्त भी जारी हुए परंतु एक भी बिंदु पर कार्यवाही नहीं हुई जिससे संस्कृत के अध्यापकों एवं कर्मचारियों में बहुत रोष है उत्तराखंड संस्कृत विद्यालय महाविद्यालय प्रबंधकीय शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष डॉ जनार्दन प्रसाद कैरवान ने कहा कि उत्तराखंड उत्तराखंड संस्कृत अकादमी में एकमात्र संस्कृत के विद्वान व्यक्ति के लिए उपाध्यक्ष का पद था जिसको खत्म करके मंत्री जी स्वयं उपाध्यक्ष बन गए और आज तक उत्तराखंड संस्कृत अकादमी की कार्यकारिणी का गठन तक नहीं हो पाया है जिससे पिछले वर्ष 50 योजनाओं में से केवल 10 योजनाएं ही कार्यवृत्त मैं आ पाई एवं इस वर्ष भी 2 महीने बीत गए अभी तक संस्कृत अकादमी ने कोई भी कार्य करना प्रारंभ नहीं किया है साथ ही शासन द्वारा बिना एक्ट में संशोधन किये उत्तराखंड संस्कृत शिक्षा परिषद को अपनी मनमर्जी से उत्तराखंड संस्कृत अकादमी के एक हॉल में भेज दिया गया है जिससे संस्कृत छात्रों के भविष्य पर संकट खड़ा हो गया है पूर्व में भी जब संस्कृत जगत के द्वारा यह विषय अखबारों में दिया गया तो मंत्री जी ने बैठक बुलाकर की परिषद कार्यालय को तुरंत देहरादून शिफ्ट करने के निर्देश दिए थे जिस का कार्यवृत्त भी जारी किया गया था किंतु 5 महीने बीतने के बाद भी उक्त निर्देशों पर कोई भी कार्यवाही नहीं हुई है अब बोर्ड के सामने एक बड़ी चुनौती खड़ी हो गई है कि छात्रों के अंकपत्र हरिद्वार के नाम से जारी करें या देहरादून के नाम से क्योंकि 1 साल की मार्कशीट में जहां देहरादून लिखा गया है वहीं अब इस साल के अंकपत्रों में हरिद्वार लिखा जा रहा है जिससे छात्रों के भविष्य के साथ साथ बोर्ड की प्रतिष्ठा पर भी सवाल उठने लग गया है इस प्रकार सब होने के बावजूद भी सरकार मौन है और संस्कृत को गड्ढे में डाला जा रहा है संस्कृत जगत में इन विषयों को लेकर के बहुत आक्रोश है और अगर जल्द ही कोई सकारात्मक निर्णय नहीं लिया गया संपूर्ण संस्कृत जगत छात्रों सहित सड़कों पर उतर कर सरकार की हकीकत को दुनिया को बताएगा