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माधुरी बड़थ्वाल को पद्म सम्मान

 माधुरी बड़थ्वाल को पद्म सम्मान

माधुरी बड़थ्वाल को पद्म सम्मान

उत्तराखंड आकाशवाणी की पहली महिला एनाउंसर डा. माधुरी बड़थ्वाल ने रिटायरमेंट के बाद महिलाओं को पारंपरिक नृत्य, वादन व गायन से जोड़ने की अभिनव पहल की। उन्होंने महिलाओं को लोक गायन का प्रशिक्षण देकर उनके लिए विभिन्न कार्यक्रमों में हिस्सेदारी सुनिश्चित की। उन्होंने महिलाओं को न केवल सिखाया बल्कि उन्हें प्रोफेनशनल की तरह तैयार भी किया। उनके इन प्रयासों से ही विलुप्त हो रही मांगल जैसी पारंपरिक कलाओं को संरक्षण मिला है।
मूलत: यमकेश्वर, पौड़ी के दमराड़ा गांव निवासी डा. माधुरी बड़थ्वाल ने एमए, पीएचडी के बाद उत्तराखंड की पहली आकाशवाणी महिला अनाउंसर के तौर पर काम किया। उन्होंने आगरा विवि, रुहेलखंड विवि और गढ़वाल विवि से अपनी पढ़ाई की। गढ़वाली लोकगीतों में राग रागनियां विषय पर उन्होंने शोध किया। 1969 से 1979 तक उन्होंने राजकीय कन्या इंटर कॉलेज लैंसडाउन कोटद्वार में संगीत अध्यापिका के तौर पर सेवा दी। उनके नाम राज्य की पहली गढ़वाली महिला संगीत अध्यापिका और गाइड कैप्टन होने की भी उपलब्धि है।
1979 से 2010 तक सूचना और प्रसारण मंत्रालय के अंतर्गत आकाशवाणी नजीबाबाद में संगीत संयोजिका व निर्देशिका के पद पर अखिल भारतीय स्तर पर भारत की पहली महिला चयनित उत्तराखंड से वह आकाशवाणी स्वर परीक्षा समिति की सदस्य भी रहीं। उन्होंने उतर क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र पटियाला में गुरु शिष्य परंपरा के तहत गुरु पद पर काम किया। संस्कृति विभाग, सूचना विभाग और गीत नाट्य अकादमी भारत सरकार की शाखा दून और विवि की क्षेत्रीय परीक्षा समितियों में संगीत व नाट्य कला विशेषज्ञ, युवाओं व महिलाओं को शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में निशुल्क संगीत प्रक्षिशण दिया।
रिटायरमेंट के बाद उन्होंने महिलाओं को गायन, वादन, नृत्य का प्रशिक्षण दिया। साथ ही उन्होंने महिलाओं को मांगल गायन भी सिखाया। शुरूआत में उन्होंने केवल प्रशिक्षण दिया। बाद में बड़ी संख्या में महिलाएं उनके नेतृत्व में शुभ कार्यों में मांगल गायन करने लगीं। उन्होंने महिलाओं की कई टीम बनाई हैं, जो आज विभिन्न शुभ कार्यों में मांगल गाने का काम करती हैं। इसके बदले उन्हें जो भी कमाई होती है, उसे सभी महिलाएं आपस में बांट लेती हैं।
उन्हें संस्कृति विभाग, सूचना व जनसंपर्क विभाग, गीत नाट्य अकादमी भारत सरकार, उत्तराखंड शाखाव सीसीआरटी दिल्ली में लोक संस्कृति विशेषज्ञ के रूप में शामिल किया गया। वह संगीत और नारी के लिए समाज की रूढ़िवादी परंपरा का सकारात्मक खंडन कर प्रेरणास्त्रोत बनीं। सेवानिवृत होने के बाद उन्होंने महिलाओं, बच्चों और युवाओं को संगीत का निशुल्क प्रशिक्षण दिया।

उन्होंने देश-विदेश के सरकारी और सोशल मीडिया में सतर्कता संदेशों के साथ वेबीनार में लोक संस्कृति का व्यावहारिक प्रशिक्षण व संवर्द्धन किया। इसके अलावा 2016 में उन्हें नारी शक्ति पुरस्कार, 2016 राष्ट्रपति सम्मान, 2014 में उत्तराखंड रत्न, 2018 में उत्तराखंड भूषण, स्व. मोहन उप्रेती लोक संस्कृति कला सम्मान से सम्मानित किया गया।
डा. माधुरी बड़थ्वाल ने बताया कि उन्होंने लॉकडाउन के दौरान पांच किताबें लिखी। इन किताबों को लिखने का उद्देश्य ज्यादा से ज्यादा लोगों को नृत्य, गायन और वादन सिखाना था। उन्होंने गढ़वाल के नृत्य प्रधान लोकगीत थड़िया, चौफुला, ऋतु प्रधान और संस्कार लोक गीत को पुस्तकों में लिपिबद्ध किया। उन्होंने शास्त्रीय संगीत को भी किताबों में लिपिबद्ध किया है। उन्होंने पारंपरिक लोक कलाओं, गीतों, नृत्य और वादन का किताबों के माध्यम से दस्तावेजीकरण किया। इसके अलावा उन्होंने वैज्ञानिक आधार पर शोध ग्रंथ गढ़वाली लोकगीतों में राग-रागनियां और गढ़वाल की लोकगाथाएं व मुहावरे की किताब भी लिखी है।

Rakesh Kumar Bhatt

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