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कबीर दोहों की प्रस्तुतियों से प्रह्लाद सिंह टिपन्या ने विरासत में लोगों का दिल जीता

 कबीर दोहों की प्रस्तुतियों से प्रह्लाद सिंह टिपन्या ने विरासत में लोगों का दिल जीता

देहरादून, विरासत आर्ट एंड हेरीटेज फेस्टिवल 2022 के चौथे दिन की शुरुआत ’विरासत साधना’ कार्यक्रम के साथ हुआ। ’विरासत साधना’ में देहरादून के अलग अलग विद्यालयों और विश्वविद्यालयों के बच्चो ने प्रतिभाग लिया जिसमें सबसे पहले दीपिका कंडवाल (डी ए वी पी जी कॉलेज) ने कत्थक नृत्य प्रस्तुत किया, दुसरी प्रस्तुति में भी चाहना गांधी ( दी दून गर्ल स्कूल) द्वारा कथक नृत्य प्रस्तुति रही, उसके बाद इति अग्रवाल द्वारा ( नृत्य किंकिनी ) भरतनाट्यम, सहज प्रीत कौर भरतनाट्यम ,सृष्टि जोशी (ग्राफिक एरा विश्वविद्यालय) कथक नृत्य कि मनमोहक प्रस्तुति दी। अंत में सौम्या (स्कॉलर हब डिफेंस इंस्टीट्यूट) ने महाभारत की एक रचना में शास्त्रीयकला (कथक) प्रदर्शन किया जिसमें उन्होंने शांति का संदेश देते हुए कार्यक्रम का समापन किया। इसके बाद सभी प्रतिभागियों को उनकी  सुंदर प्रस्तुति के लिए कल्पना शर्मा द्वारा सर्टिफिकेट से सम्मानित किया गया। इस ’विरासत साधना’ में 12 विद्यालय एवं विश्वविद्यालय के 13 बच्चो ने प्रतिभाग लिया।
सांस्कृतिक संध्या कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्वलन के साथ हुआ एवं प्रहलाद सिंह टिपानिया ने कबीर दोहों की प्रस्तुतियां दी। जिसमें उन्होने कबीर के प्रभावशाली दोहों की गायकी कर लोगो को नैतिक संदेश देने की कोशिश की, उन्होंने प्रस्तुति की शुरुआत गुरु वंदना से की जिसमें उन्होंने गुरु कौन है एवं शरीर ही गुरु है दोहों के भाव को व्यक्त किया। उसके बाद उन्हों गुरु की सरण और अंत में (जरा हलके गाड़ी हांको को) से प्रस्तुति का समापन किया । उनकी संगत मे अशोक (गायकी) देवनारायण सहोलिया (वॉयलेन), अजय टिपानिया (ढोलक), धर्मेंद्र (हारमोनियम ) मंगलेश (तुनकी), हिमांशु (करताल) संग मिलकर प्रस्तुति को और मनोहर बना दिया।
प्रह्लाद सिंह टिपन्या आज भारत में कबीर गायकी के सबसे लोकप्रिय आवाज़ों में से एक है। वे मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र की लोक शैली में कबीर भजनों के गायन और व्याख्या करते है। पंद्रहवीं सदी के इस संत-कवि के शब्दों को गाँव-गाँव मे सैकड़ों भजन मण्डलियों द्वारा गाया जाता है, उनके सदस्यों ने 600 वर्षों से कबीर की कविता गाने की अटूट मौखिक परंपरा को जीवित रखा है। वे गायन के साथ तंबूरा, खड़ताल, मंजीरा, ढोलक, हारमोनियम, टिमकी और वायलिन वादक भी हैं। टिपन्या को मध्य प्रदेश सरकार द्वारा शिखर सम्मान (2005), 2007 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार और 2011 में पद्मश्री सहित कई पुरस्कार मिले है।
प्रह्लादजी कि प्रभावशाली गायन शैली से अपने दर्शकों के साथ संवाद करने की चुंबकीय क्षमता के साथ जोड़ते हैं। उनके संगीत कार्यक्रम मनोरंजक संगीत से कहीं अधिक हैं। कबीर के आध्यात्मिक और सामाजिक विचारों से उनका गहरा जुड़ाव है। मालवा में उन्हें न केवल एक गायक के रूप में सराहा जाता है, बल्कि कबीर के संदेशों को बड़ी व्यक्तिगत तीव्रता और जुड़ाव के साथ प्रचारित करने वाले के रूप में भी सम्मानित किया जाता है। उनके संगीत समारोहों में क्षुद्र विभाजन, संप्रदायवाद, खाली कर्मकांड और पाखंड से ऊपर उठने की आवश्यकता और प्रेम को परम धर्म के रूप में अपनाने की आवश्यकता पर बल दिया गया है। सांस्कृतिक कार्यक्रम की आखिरी प्रस्तुति में गौरी पथारे द्वारा शास्त्रीय संगीत प्रस्तुत किया गया, उनकी गायिकी की सबसे अनूठी विशेषता यह है कि उन्होंने अपनी शैली विकसित की है जहां राग मुख्य पहलू है और किसी एक घराने के गायकी विशिष्ट के अनुसार नहीं बल्कि राग की प्रकृति और प्रवाह की आवश्यकता के अनुसार प्रतिनिधित्व किया जाता है। हालांकि वह खुद पिछले दो दशकों से एक शिक्षिका रही हैं, लेकिन वह अपने गुरु से अपनी शिक्षा जारी रखने और नियमित रियाज करने में विश्वास करती हैं।
गौरी जी ने तीन ताल के बड़ा ख्याल में राग नंद से शुरुआत की थी, अगली प्रस्तुति द्रुत तीन ताल में छोटा ख्याल में थी,“धन धन भाग नंद को“ इसके बाद उन्होंने राग चारुकेशी में एक मराठी नाट्यगीत द्वारा राग देश के में दादरा प्रस्तुत किया, उन्होंने राग भैरवी के गायन के साथ समापन किया। उनकी संगत  में तबले पर मिथिलेश झा जी और हारमोनियम पर सुश्री पारोमिता मुखर्जी ने उनका इस प्रस्तुति में दिल से शियोद दिया।
गौरी पथारे भारत के ख्याति प्राप्त शास्त्रीय संगीत गायिका हैं, उन्होंने पं गंगाधरबुवा पिंपलखारे के मार्गदर्शन में किराना घराने में प्रशिक्षण प्राप्त किया उसके बाद, पाठारे ने स्वर्गीय जितेंद्र अभिषेकी और पंडिता पद्मताई तलवलकर से कई सालों तक संगीत की शिक्षा ली। 2010 से, वह पं अरुण द्रविड़ के तहत जयपुर घराना से प्रशिक्षण प्राप्त कर रही है। विभिन्न गुरुओं के अधीन उनके प्रशिक्षण ने उनकी गायकी को निखार दिया है। उन्होंने 3 घरानों – जयपुर-अतरौली घराना, ग्वालियर घराना और किराना घराने में प्रशिक्षण लिया है। गौरी ने ख्याल प्रस्तुति की अपनी शैली बनाने के लिए जयपुर, ग्वालियर और किराना घराने के गायकी को मिश्रित किया है। गौरी ने भारत के कई नामची शास्त्रीय संगीत समारोह में प्रस्तुति दी है जिसके अंतर्गत सवाई गंधर्व महोत्सव, तानसेन उत्सव, चंडीगढ़ संगीत सम्मेलन, केसरबाई केरकर सम्मेलन, पं. कुमार गंधर्व संगीत सम्मेलन आदि है । उन्होंने अक्सर भारत, फ्रांस, स्विट्जरलैंड, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, दुबई, यूनाइटेड किंगडम और सिंगापुर में प्रदर्शन किया है।

Rakesh Kumar Bhatt

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