Jagannath Rath Yatra 2023: क्यों निकाली जाती है जगन्नाथ रथ यात्रा? इस कारण मौसी के घर जाते हैं भगवान - Shaurya Mail

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Jagannath Rath Yatra 2023: क्यों निकाली जाती है जगन्नाथ रथ यात्रा? इस कारण मौसी के घर जाते हैं भगवान

 Jagannath Rath Yatra 2023: क्यों निकाली जाती है जगन्नाथ रथ यात्रा? इस कारण मौसी के घर जाते हैं भगवान

भगवान विष्णु पूरी दुनिया के रचयिता है। भगवान राम और कृष्ण की तरह अनेक अवतार लेकर उन्होंने पृथ्वी पर मनुष्यों का कल्याण किया है। ओड़िसा के  पुरी में स्थित जगन्नाथ मंदिर भी भगवान विष्णु के अवतार कृष्ण का ही मंदिर हैं। इस मंदिर की लोगों के बीच बहुत आस्था हैं। कहते हैं कि मंदिर में रखी मुर्तियों में धड़कन हैं। जो भगवान के मंदिर में होने का प्रतीक हैं। पूरी दुनिया से लोग जगन्नाथ मंदिर में भगवान के दर्शन के लिए आते हैं। हर साल मंदिर की मान्यता के अनुसार यहां रथ यात्रा भी निकाली जाती हैं। पुरी की रथ यात्रा को सबसे पुराना और सबसे बड़ा हिंदू रथ उत्सव माना जाता है जो प्रतिवर्ष मनाया जाता है। आषाढ़ मास (जून-जुलाई) के शुक्ल पक्ष में इस त्यौहार का आयोजन किया जाता हैं।

जगन्नाथ रथ यात्रा

भारत के ओडिशा राज्य में पुरी शहर में रथ यात्रा आयोजित की जाती है और देवता जगन्नाथ (विष्णु या कृष्ण का एक रूप) से जुड़ा होती है। देवता जगन्नाथ के जीवन की कहानी के अनुसार त्योहार के दौरान, तीन देवताओं (जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा) को तीन विशाल, लकड़ी के रथों में खींचकर गुंडिचा मंदिर ले जाया जाता है, जहां वे वहां एक सप्ताह तक निवास करते हैं और फिर जगन्नाथ मंदिर लौट आते हैं। देवता जगन्नाथ की कहानी का वर्णन ब्रह्म पुराण, पद्म पुराण, स्कंद पुराण और कपिला संहिता में पाया जाता है।

गुंडिचा मंदिर 

गुंडिचा मन्दिर भगवान जगन्नाथ मन्दिर से लगभग तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। गुंडिचा मन्दिर को कलिंग वास्तुकला में बनाया गया है और भगवान जगन्नाथ की मौसी गुंडिचा को समर्पित किया गया है, एसी मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ की मौसी गुंडिचा का घर माना जाता है। मान्यता है कि जगन्नाथ रथयात्रा के दौरान भगवान यहाँ 9 दिन तक ठहरते हैं। जगन्नाथ मंदिर से आने वाली रथयात्रा में भगवान जगन्नाथ, बालभद्र और सुभद्रा गुंडिचा मंदिर आते है, जहां उनकी मौसी पादोपीठा खिलाकर उनका स्वागत करती हैं।

कौन हैं भगवान जगन्नाथ? 

शास्त्रों में भगवान श्रीकृष्ण के ही जगन्नाथ होने के प्रमाण मिलते हैं। मत्स्य पुराण में भगवान जगन्नाथ की कथा का वर्णन हैं। जगन्नाथ मंदिर में ही भगवान श्रीकृष्ण अपने भाई-बहन के साथ रहते थे। जगन्नाथ मंदिर परिसर में कई मूर्तियां हैं। छोटे-छोटे मंदिर भी हैं। इन मंदिरों में जो मूर्तियां है वह अष्टधातु या अन्य किसी धातु या पत्थर बनीं हुई हैं लेकिन मुख्य मंदिर के अंदर जो मूर्ति स्थापित है वह किसी धातू या पत्थर से नहीं बनीं हैं बल्कि नीम की लकड़ी से बनीं हुई हैं। पुराणों जिस कथा का जिक्र है उसके अनुसार इस क्षेत्र में राजा इंद्रद्युम्न का शासन हुआ करता था। वह श्रीकृष्ण के बड़े भक्त थे। एक दिन इंद्रद्युम्न को सपने में श्रीकृष्ण ने नीम के पेड़ के लट्ठे से अपनी और अपने भाई-बहन बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियां बनाने का आदेश दिया था, तब राजा इंद्रद्युम्न ने जगन्नाथ मंदिर बनवाया था। भगवान अपने भाई-बहनों के साथ इसी मंदिर में विराजमान हैं। उनके इस मंदिर में होने के कई प्रतीक हैं।

जगन्नाथ मन्दिर की मूर्तियों में हैं भगवान की धड़कन का अंश 

कहते हैं जो एक बार इस मंदिर के अंदर चला जाता है उसके अंदर से सारी नकारात्मकता खत्म हो जाती हैं। वह काफी पॉजिटिव हो जाता हैं। भगवान के मंदिर में होने का लोगों को एहसास होता हैं। मान्यता के अनुसार कहते हैं कि इस मंदिर के मुख्य घर के अंगर नीम की बनीं मुर्तियों में धड़कन महसूस की जाती हैं।  जगन्नाथ मंदिर के पुजारियों का कहना है कि हर 12 साल में भगवान की मूर्तियों को बदला जाता है। मूर्तियों के अंदर ब्रह्म पदार्थ होता हैं। इसे जब मूर्तियां बदली जाती है तो ब्रह्म पदार्थ को भी विस्थापित किया जाता है। ऐसे में जब दूसरी मूर्ति में ब्रह्म पदार्थ को डाला जाता है तो उसमें कुछ उझलने जैसा महसूस किया जाता है। यह भगवान की धड़कन का अंश है। कहते हैं ब्रह्म पदार्थ को बदलते वक्त पुजारियों की आंख पर पट्टी बांध दी जाती हैं। क्योंकि यह क्रिया करते वक्त ब्रह्म पदार्थ के तेज से पुजारी की आंख की रोशनी जा सकती है और उसकी मृत्यु भी हो सकती हैं इस लिए ब्रह्म पदार्थ को मूर्ति में डालते वक्त इस प्रक्रिया को पुजारी देख नहीं सकते हैं केवल वह महसूस कर सकते हैं। इसी तरह मंदिर की धूप में कभी भी परछाई नहीं बनती है।

Rakesh Kumar Bhatt

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