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देश का लोकतंत्र मुफ्त के मकड़जाल में फंस चुका है

 देश का लोकतंत्र मुफ्त के मकड़जाल में फंस चुका है

देश का लोकतंत्र मुफ्त के मकड़जाल में फंस चुका है

कई शीर्ष नौकरशाहों ने  विधानसभा चुनावों के दौरान राजनीतिक दलों द्वारा घोषित लोकलुभावन योजनाओं और मुफ्त उपहारों को लेकर अपनी चिंता जाहिर की है

कर्म को ही पूजा मानने वाले देश में वोटों की राजनीति की वजह से चुनावी वादों के रूप में फ्री में खाने की सामग्री से लेकर अन्य वस्तुएं वितरित करने की जो रवायत चल पड़ी है। ये इस बात का साफ संकेत है कि इस देश का लोकतंत्र मुफ्त के मकड़जाल में फंस चुका है। जिसका खामियाजा आने वाले वक्त में देश को चुकाना पड़ सकता है। पड़ोसी देश श्रीलंका की बदहाली और दिवालिया होने के कगार पर पहुंचने की खबरों से तो सभी परिचित हैं, लेकिन अगर भारत में भी कुछ चीजों को नियंत्रित नहीं किया गया तो देश के हालात श्रीलंका जैसे हो सकते हैं। जिसको लेकर अधिकारियों ने प्रधानमंत्री मोदी को अपडेट किया है।

कई शीर्ष नौकरशाहों ने  विधानसभा चुनावों के दौरान राजनीतिक दलों द्वारा घोषित लोकलुभावन योजनाओं और मुफ्त उपहारों को लेकर अपनी चिंता जाहिर की है। कुछ राज्य में इस प्रवृत्ति पर नियंत्रण नहीं किया गया तो ऐसे में वे  नकदी-खाद्य संकट जैसी स्थिति में श्रींलका और ग्रीस के रास्ते पर भी जा सकते हैं। पीएम नरेंद्र मोदी के साथ लगभग चार घंटे की बैठक के दौरान कुछ सचिवों ने कहा कि कई राज्यों में घोषणाएं और योजनाएं आर्थिक रूप से अस्थिर हैं और उन्हें राजनीतिक जरूरतों के साथ संतुलित निर्णय लेने के लिए राजी करने की आवश्यकता है। सूत्रों ने टीओआई को बताया कि केंद्र में आने से पहले राज्यों में महत्वपूर्ण पदों पर रहने वाले सचिवों ने आगाह किया था कि कई राज्यों की वित्तीय स्थिति अनिश्चित थी और अगर वे संघ का हिस्सा नहीं होते तो उनका पतन हो गया होता।

पीएम मोदा ने 7 लोक कल्याण मार्ग स्थित अपने आवास पर सभी विभागों के सचिवों के साथ करीब चार घंटे की लंबी बैठक की है। इस बैठक में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल, प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव पीके मिश्रा और कैबिनेट सचिव राजीव गौबा के अलावा कई अन्य शीर्ष अधिकारी भी शामिल हुए थे। अधिकारियों ने कहा कि पंजाब, दिल्ली, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल जैसी राज्य सरकारों द्वारा की गई घोषणाएं टिकाऊ नहीं हैं और कुछ समाधान खोजने की जरूरत है। कई राजनीतिक दल मुफ्त बिजली की पेशकश कर रहे हैं, जिससे राज्य के खजाने पर बोझ पड़ रहा है, क्योंकि इस तरह के अनुदान का प्रावधान बजट में किया जाना चाहिए। यह स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण सामाजिक क्षेत्रों के लिए अधिक धन आवंटित करने की उनकी क्षमता को भी सीमित करता है। यहां तक ​​कि बीजेपी ने हाल के चुनावों के दौरान यूपी और गोवा में मतदाताओं के लिए मुफ्त एलपीजी कनेक्शन और अन्य रियायतों का वादा किया था।

अधिकारियों ने कहा कि राजनीतिक संगठनों के बीच हर चुनाव से पहले मुफ्त उपहार देने की होड़ का यह चलन लंबे समय में राज्य और केंद्र सरकार के वित्त पर गंभीर असर डालेगा। अधिकारियों ने कहा कि पीएम ने सचिवों से गरीबी उन्मूलन के लिए हर संभव कदम उठाने और शासन पर विचारों के साथ आने का आग्रह किया, क्योंकि उन्हें राज्य सरकारों और केंद्र में भी व्यापक अनुभव है।

Rakesh Kumar Bhatt

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