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भारत और चीन के बीच 2020 के बाद सीमा विवाद और बढ़ता दिखाई दे रहा है।

 भारत और चीन के बीच 2020 के बाद सीमा विवाद और बढ़ता दिखाई दे रहा है।

मई 2020 में गलवान में झड़प हुई थी। उसके बाद से दोनों देशों के बीच सैन्य कमांडर स्तर की वार्ता भी हुई। कुछ मुद्दों को लेकर दोनों देशों के बीच सहमति भी बनी। लेकिन लेकिन 9 दिसंबर 2022 को एक बार फिर से तवांग में चीन ने एलएसी पर एकतरफा यथास्थिति को बदलने की कोशिश की। अब सवाल यह उठता है कि आखिर चीन वार्ता में कुछ और कहता है तथा हकीकत में कुछ और करने की कोशिश क्यों करता है। लेकिन इस बात में पूरी तरह से सच्चाई है कि 1962 की जंग के बाद से ही चीन लगातार भारत के कई क्षेत्रों को लेकर बुरी नजर रखता है जिसमें तवांग भी शामिल है। खुद चीन इस वक्त बुरे हालात से गुजर रहा है। चीन में कोरोना महामारी का खतरा अपने चरम पर है। इसके अलावा वहां की अर्थव्यवस्था भी डगमगा रही है। बावजूद इसके वह अपनी विस्तारवाद नीति को लगातार आगे बढ़ाने की कोशिश करता है। अब सवाल यह है कि आखिर चीन भारत को लेकर इतना आक्रमक क्यों रह रहा है?

चीन की विस्तारवाद नीति

अगर भारत 1947 में आजाद हुआ तो चीन 1949 में। भारत में लोकतांत्रिक व्यवस्था मजबूत हुई तो चीन में कहीं ना कहीं कम्युनिस्ट शासन रहा। हालांकि, अर्थव्यवस्था के लिहाज से चीन भारत से आगे निकल गया। लेकिन कहीं ना कहीं वह अपनी विस्तारवाद नीति पर भी कायम रहा। सन 2000 के बाद से चीन अपनी विस्तारवाद नीति को लेकर आक्रमक दिखाई दिया। चीन दुनिया में अपनी धाक जमाने की कोशिश करता रहा। इसकी वजह से भारत का भी प्रभावित हुआ। चीन ने अपने पड़ोसी देशों में विस्तारवाद नीति की बदौलत लगातार प्रवेश करने की कोशिश करता रहा है। लेकिन भारत हमेशा उसके विस्तारवाद नीति का विरोध किया है। लेकिन चीन भारत सहित कई पड़ोसी देशों के इलाकों में कब्जा करने की कोशिश करता है।

शी जिनपिंग की चाल

शी जिनपिंग चीन के सर्वोच्च नेता हैं। वह हमेशा सत्ता में अपनी मजबूत पकड़ कर रखना चाहते हैं। हाल के दिनों में हमने देखा है कि किस तरीके से चीन में लोगों ने अपनी नाराजगी व्यक्त की है। यही कारण है कि चीन समय-समय पर भारत के खिलाफ नापाक साजिशें करता है ताकि वे अपने देश के लोगों का मुख्य मुद्दों से ध्यान भटका सके। चीन पड़ोसी देशों के साथ तनातनी करके अपने देश में यह संदेश देने की कोशिश करता है कि वह सभी से मजबूत है और शी जिनपिंग के रहते चीन मजबूत रहने वाला है।

चीन का रवैया

चाहे तिब्बत हो या फिर ताइवान, चीन ने अपनी विस्तारवाद नीति की बदौलत दोनों देशों को लगातार परेशान किया है। फिलहाल चीन की आंखों में ताइवान खटकता है। ताइवान को अमेरिका का साथ हासिल है। ऐसे में चीन कहीं ना कहीं भारत को भी निशाना बनाना चाहता है। दुनिया में अपना प्रभुत्व कायम रखने के लिए चीन की ओर से भारत में हमले की योजना बनाई जाती है। हालांकि, भारत ने चीन की हर चाल को नाकाम किया है। चीन भी इस बात को भलीभांति समझता है कि भारत अब 1962 का नहीं बल्कि 2022 का है।

एशिया में दबदबा

चीन को पाकिस्तान और रूस जैसे देशों का समर्थन मिलता रहा है। एशियाई महाद्वीप में चीन हमेशा अपना वर्चस्व स्थापित करने की कोशिश करता है। हालांकि, भारत भी अब दुनिया की नजरों में विशाल देश हो चुका है। यहां की भी अर्थव्यवस्था मजबूत है। भारत हर क्षेत्र में चीन को टक्कर देने को तैयार है। ऐसे में एशिया में चीन को भारत के बढ़ते प्रभुत्व को खतरा नजर आता है। यही कारण है कि चीन लगातार भारत को परेशान करने की कोशिश में रहता है।

कूटनीतिक दृष्टि से भारत मजबूत

भारत की बात करें तो कूटनीतिक दृष्टि से हमारे संबंध दुनिया के कई देशों के साथ मधुर रहे हैं। चीन इस मामले में थोड़ा पिछड़ता दिखाई दे रहा है। यही कारण है कि चीन दुनिया के सामने भारत पर अपना दबदबा को दिखाने की कोशिश करता है। चीन और अमेरिका के रिश्ते पिछले कुछ सालों से लगातार बिगड़ते चले गए। वही, भारत अगर रूस के साथ अपने रिश्ते को सामान्य रखता है तो अमेरिका के साथ भी इसके रिश्ते बेहद मजबूत हैं। वैश्विक मंच पर तो चीन आतंकवाद के खिलाफ दृढ़ता से लड़ाई की बात तो करता है। लेकिन कई बार पाकिस्तान में रह रहे आतंकियों के पक्ष में खड़ा हो जाता है। लेकिन भारत लगातार आतंक के खिलाफ खड़ा रहता है।

Rakesh Kumar Bhatt

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